आँचल


मकसद की तलाश में जीने की उस आस में
जिन्दा हूँ ज़िन्दगी तेरे अहसास में
तारें कुछ दूर नहीं चाँद भी तो यहीं आ गया
मंजिल तुझको छूने अपने खास अंदाज़ में
सवार तो हूँ बस तेरे आसियाने के तले
आँख खुली जबसे अरमान कईं मेरे मन में पले
सांस तो कब से चल रही है आहिस्ता से
पतंग उड़ चली है मेरी अब तेरे आँचल में

No comments:

Post a Comment